पतंग कट भी जाए मेरी तो कोई परवाह नहीं
आरजू बस ये है की उसकी छत पर जा गिरे
- अज्ञात
कुछ यूँ हो गयी है तस्वीर अपने शहर की आजकल | जो लापता थी कुछ सालों से वो पतंगे आसमान में दिखने लगी है | शाम होते ही सब पहुँच जाते हैं छतों पर कुछ लोग माँझे लड़ा रहे हैं और कुछ इश्क लड़ा रहे है| हाँ ये हिंदुस्तान है साहब कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेता है हर मुश्किल में खुश रहने का |
दिन में रामायण , महाभारत और शाम को पतंगबाज़ी, कौन कहता है की बचपन वापस नहीं आता .......
आरजू बस ये है की उसकी छत पर जा गिरे
- अज्ञात
कुछ यूँ हो गयी है तस्वीर अपने शहर की आजकल | जो लापता थी कुछ सालों से वो पतंगे आसमान में दिखने लगी है | शाम होते ही सब पहुँच जाते हैं छतों पर कुछ लोग माँझे लड़ा रहे हैं और कुछ इश्क लड़ा रहे है| हाँ ये हिंदुस्तान है साहब कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेता है हर मुश्किल में खुश रहने का |
दिन में रामायण , महाभारत और शाम को पतंगबाज़ी, कौन कहता है की बचपन वापस नहीं आता .......
No comments:
Post a Comment